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Himachal: चूड़धार में उमड़ा आस्था का सैलाब, 52 वर्षों बाद शांत महायज्ञ के हजारों लोग बने साक्षी

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार में बीते शुक्रवार को आस्था का सैलाब उमड़ा।

Reported by:  PTC News Desk  Edited by:  Rahul Rana -- October 12th 2024 11:55 AM -- Updated: October 12th 2024 11:57 AM
Himachal: चूड़धार में उमड़ा आस्था का सैलाब, 52 वर्षों बाद शांत महायज्ञ के हजारों लोग बने साक्षी

Himachal: चूड़धार में उमड़ा आस्था का सैलाब, 52 वर्षों बाद शांत महायज्ञ के हजारों लोग बने साक्षी

ब्यूरो: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार में बीते शुक्रवार को आस्था का सैलाब उमड़ा। मौका था करीब 52 वर्षों बाद आयोजित हुए शांत महायज्ञ का था। इस धार्मिक अनुष्ठान के हजारों लोग साक्षी बने। इस दौरान चोटी की वादियां शिरगुल महाराज और चूड़ेष्वर महाराज के जयकारों से गूंजती नजर आई।

दरअसल चूड़धार में करीब 2 दशक बाद शिरगुल महाराज का नया मंदिर बनकर तैयार हुआ है। मंदिर पर कुरूड़ चढ़ाए जाने की परम्परा निभाई गई।  इस दौरान करीब 27 हजार श्रद्धालु इस पावन अनुष्ठान के साक्षी बने। चोटी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब इतने अधिक श्रद्धालुओं ने एक साथ चोटी पर पहुंचे।


इस दौरान श्रद्धालुओं ने शिरगुल महाराज के चरणों में शीश नवाया और मंगलमय जीवन की कामना की। इस दौरान हजारों लोगों ने लिंबर लगाया। ऐसा माना जाता है कि मंत्रोच्चारण व लिंबर लगाने से देवता की दिव्य शक्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है। इससे क्षेत्र में फैली बुरी शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। बता दें कि चौपाल उपमंडल के कालाबाग, संगड़ाह के चाबधार और तीसरी आदि स्थानों से श्रद्धालु शुक्रवार को शांत पर्व में शामिल हुए। उधर शांत महायज्ञ शुरू होने से पहले ही बिजट महाराज, शिरगुल देवता, गुड़ियाली माता व डुंडी माता की पालकियों समेत विभिन्न देवी देवताओं की दर्जनों छड़ियां वीरवार शाम को ही चूड़धार पहुंच गई थी।

उधर शिमला और सिरमौर जिला के प्रशासन और पुलिस के अधिकारी कर्मचारी इस दौरान मौजूद रहे। दोनों जिलों के प्रशासन की ओर से सुरक्षा और अन्य व्यवस्थाओं का इंतजाम किया गया। रास्तों पर लगभग 200 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए। खास बात यह भी रही कि मंदिर को 5 क्विंटल फूलों से सजाया गया। यहां दो हजार से अधिक लोग महायज्ञ की व्यवस्था बनाने में जुटे।

बता दें कि शांत महायज्ञ किसी भी मंदिर के निर्माण पूरा होने की अंतिम रस्म है, जिसमें कुरुड़ स्थापित करने की परंपरा है। इसे मंदिर का मुकुट कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

- PTC NEWS

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