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रावण की तपोस्थली बैजनाथ: हिमाचल की इस जगह पर रावण का सम्मान के साथ लिया जाता है नाम, बच्चों को सुनाई जाती है रावण की कहानी, जानिए

Baijnath Temple: आज पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा मनाया जा रहा है। लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहां लोग दशहरा नहीं मनाते, राम-राम नहीं बोलते और तो और रावण के बारे में कुछ बुरा नहीं सुन सकते। हैरान करने वाली यह है कि यहां दादी-नानी बच्चों को भगवान राम की नहीं बल्कि रावण की कहानी सुनाती हैं। वह स्थान भारत में ही है

Reported by:  PTC News Desk  Edited by:  Md Saif -- October 12th 2024 12:41 PM
रावण की तपोस्थली बैजनाथ: हिमाचल की इस जगह पर रावण का सम्मान के साथ लिया जाता है नाम, बच्चों को सुनाई जाती है रावण की कहानी, जानिए

रावण की तपोस्थली बैजनाथ: हिमाचल की इस जगह पर रावण का सम्मान के साथ लिया जाता है नाम, बच्चों को सुनाई जाती है रावण की कहानी, जानिए

ब्यूरो: Baijnath Temple: आज पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा मनाया जा रहा है। लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहां लोग दशहरा नहीं मनाते, राम-राम नहीं बोलते और तो और रावण के बारे में कुछ बुरा नहीं सुन सकते। हैरान करने वाली यह है कि यहां दादी-नानी बच्चों को भगवान राम की नहीं बल्कि रावण की कहानी सुनाती हैं। वह स्थान भारत में ही है, जी हां.. भारत के उत्तरी राज्य हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पास स्थित बैजनाथ वह जगह है। आमतौर पर इस स्थान को रावण की तपोस्थली कहा जाता है।


यहां मान्यता है कि रावण ने इसी जगह पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिव जी के प्रसन्न न होने पर रावण ने एक-एक करके नौ शीश हवन कुंड में चढ़ा दिए। इसके बाद ही शिव जी प्रकट होते हैं और रावण से वरदान मांगने को कहते हैं। बैजनाथ में न ही दशहरा मनाया जाता है और न ही रावण का दहन होता है। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि अगर टीवी पर रावण दहन से जुड़ी कोई तस्वीर या वीडियो आ जाए तो यहां के लोग टीवी को तुरंत बंद कर देते हैं। यहां लोग रावण को रावण नहीं बल्कि रावण जी कहते हैं। यहां आपको कोई भी सुनार की दुकान भी नहीं मिलेगी, क्योंकि कहा जाता है कि जिसने भी यहां सोने या सुनार की दुकान खोली तो उसका सोना शिवलिंग के रंग का हो जाता है।

हम आपस में मिलने पर राम-राम कहकर एक दूसरे का हाल जानते हैं, लेकिन यहां तो राम-राम नहीं बल्कि जय शंकर या जय महाकाल कहते हैं। यहां लोग अपने बच्चों को भगवान राम की वीरता के बारे में नहीं बल्कि रावण के बारे में बताते हैं। बच्चों को बताया जाता है रावण जैसा विद्वान और शक्तिशाली कोई नहीं हुआ। बैजनाथ के मंदिर के पंडित जी बताते हैं कि इस मंदिर में रावण की कोई मूर्ति नहीं है और न ही रावण की पूजा होती है। पंडित जी कहते हैं "उनका दर्जा बहुत बड़ा है, देश के बाकी हिस्सों के अलग उनकी छवि यहां है।"

क्यों नहीं मनाया जाता यहां दशहरा? 

बताया जाता है कि बैजनाथ में रावण ने तप किया था। कहा जाता है कि यहां जब भी किसी ने दशहरा मनाया उसकी एक महीने बाद मौत हो गई। यहां के लोगों का मानना है कि भगवान शिव की धरती पर उनके भक्त को कोई दहन नहीं कर सकता है, इससे महाकाल नाराज हो जाते हैं।

यहां मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां किसी को भगवान राम से कोई दिक्कत नहीं है, परंतु हम सभी भगवान शिव की पूजा करते हैं और रावण की स्तुति करते हैं। यहां त्योहारों में सिर्फ सावन और शिवरात्रि मनाई जाती है। भगवान शिव के अलावा यहां किसी को नहीं माना जाता है, रावण को इसलिए मानते हैं क्योंकि वह शिव जी के भक्त थे।

रावण लंका ले जाना चाहता था शिवलिंग 

हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बैजनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ तहसील में है। मंदिर नागर शैली में बना है। इसके बगल से बिनवा नदी बहती है। 

मंदिर की ऊंचाई 51 फीट और चौड़ाई 31 फीट है। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 9वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान कत्यूरी वंश के शासकों ने कराया था। कांगड़ा राजा संसार चंद ने 18वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण कराया था। बैजनाथ मंदिर के अलावा यहां तीन और पलिकेश्वर, मुकुटनाथ और महाकाल मंदिर हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण जिस शिवलिंग को लंका ले जाना चाहता था, वही शिवलिंग इस मंदिर में है। हर साल मकर संक्रांति से अगले सात दिन तक शिवलिंग पर मक्खन चढ़ाया जाता है।

रावण का इस मंदिर से क्या नाता है? 

मंदिर में रखी एक किताब के अनुसार बैजनाथ मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा का जिक्र किया गया है। किताब में उल्लेख है कि त्रेता युग में रावण भगवान शिव का भक्त था। उसने कैलाश पर्वत पर तप किया लेकिन भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए। किताब में लिखा है "तब रावण ने हवन कुंड बनाया और नृत्य व तंत्रिका क्रिया के बाद अपने एक-एक शीश हवन कुंड में चढ़ाने लगा। 9वें शीश की आहुति देने के बाद भी शिवजी प्रसन्न नहीं हुए तो रावण 10वें शीश की आहुति देने लगा। इससे देवता घबरा गए और शिवजी से कहने लगे कि कुछ कीजिए। इसके बाद शिवजी प्रकट हुए। फिर भगवान शिव ने रावण के सभी शीश वापस जीवित कर दिए।" 

किताब में बताया गया है कि फिर रावण ने भगवान शिव से कहा कि मैं आपको लंका में स्थापिक करना चाहता हूं। शिवजी ने इसे मानते हुए रावण के सामने एक शर्त रख दी, वो शर्त ये थी कि एक बार शिवलिंग उठाने के बाद कहीं रखा तो शिवलिंग वहीं विराजमान हो जाएगा। रावण ने ये शर्त मान ली। 

किताबा में लिखा है "शिवलिंग ले जाते समय रावण को लघुशंका लगी, इस वजह से रावण ने बैजू नाम के ग्वाला को शिवलिंग देकर लघुशंका के लिए चला गया। कुछ देर तक रावण के नहीं लौटले पर ग्वाले ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। रावण वापस लौटा और शिवलिंग उठाने की कोशिश करने लगा, लेकिन शिवलिंग अपनी जगह से नहीं हिला। रावण को शिव जी की माया के बारे में समझ आ गया था।" आज भी यहां कि शिवलिंग जमीन में धंसा हुआ है। शिवजी ने रावण के शीश ठीक को ठीक किया था, इसलिए इस मंदिर को वैद्यनाथ या बैजनाथ बाबा पड़ गया।

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