- भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दी विधानसभा स्पीकर के बयान पर प्रतिक्रिया
- कहा- नियम के मुताबिक चलती विधानसभा की कार्यवाही तो होनी चाहिए थी वोटिंग
- शायद स्पीकर महोदय को नियम समझ ही ना आए - हुड्डा
चंडीगढ़। पूर्व मुख्यमंत्री और
नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा स्पीकर को नियमों का हवाला देते हुए जवाब दिया है। हुड्डा का कहना है कि अगर नियमों के मुताबिक सदन की कार्यवाही चलती तो विपक्ष की मांग मानते हुए स्पीकर को वोटिंग जरूर करवानी चाहिए थी। विपक्ष लगातार 3 नए कृषि कानूनों पर वोटिंग की मांग कर रहा था।
वोटिंग से ही जनता को पता चल पाता कि कौन-सी पार्टी, कौन-से विधायक इन बिलों के साथ खड़े हैं और कौन इनका विरोध कर रहे हैं। लेकिन स्पीकर बार-बार नियम 184 का हवाला देते हुए वोटिंग से इनकार करते रहे, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा लगता है कि स्पीकर मोहदय को नियम पूरी तरह समझ नहीं आए। नियम 184 से पहले 183 आता है।
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भूपेंद्र हुड्डा ने विधानसभा स्पीकर के बयान पर दी प्रतिक्रिया, कही ये बात[/caption]
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भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि नियमों में स्पष्ट है कि स्पीकर चाहें तो नियम 183 के तहत वोटिंग करवा सकते हैं। स्पीकर को चाहिए था कि वो किसानों के इतने बड़े मुद्दे पर नियम 183 के तहत वोटिंग करवाते ताकि जनता के सामने पूरा सच आता। किसानों और कांग्रेस की एक ही मांग थी कि 3 कृषि कानूनों में या तो संशोधन करके एमएसपी का प्रावधान जोड़ा जाए या फिर अलग से कानून बनाया जाए। जिसमें एमएसपी की गारंटी और एमएसपी से कम पर खरीदने वाले को सजा का प्रावधान हो। लेकिन इनमें से हमारी किसी भी मांग को नहीं माना गया।
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भूपेंद्र हुड्डा ने विधानसभा स्पीकर के बयान पर दी प्रतिक्रिया, कही ये बात[/caption]
हुड्डा ने कहा कि जिस तरह से सदन में विपक्ष की आवाज को दबाया गया है, उससे साफ है कि सरकार के पास विपक्ष के सवालों के जवाब ही नहीं थे। स्पीकर महोदय ने कांग्रेस की तरफ से दिए गए ज्यादातर संशोधनों और प्रस्तावों को नामंजूर कर दिया। पूरी कार्यवाही के दौरान ऐसा लगा कि सरकार ने सिर्फ अपने विधायी कार्य निपटाने के लिए सत्र बुलाया था।
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भूपेंद्र हुड्डा ने विधानसभा स्पीकर के बयान पर दी प्रतिक्रिया, कही ये बात[/caption]
हुड्डा ने कहा कि पिछली बार भी कोरोना का बहाना बनाकर सरकार ने सत्र को महज एक दिन का रखा और कई ज़रूरी मुद्दों पर जवाब देने से भाग गई। और इस बार भी तीन कृषि कानून, फसलों की एमएसपी, शराब घोटाला, रजिस्ट्री घोटाला, बढ़ती बेरोजगारी, पी टी आई, ग्रुप डी कर्मचारियों, बढ़ता अपराध, जहरीली शराब से मौतें जैसे मुद्दों पर चर्चा से बचने के सत्र की अवधि सिर्फ दो दिन रखा गया।
विधायकों ने सदन के भीतर अपनी आवाज उठानी चाही तो उन्हें नेम करके बाहर कर दिया गया। बावजूद इसके स्पीकर अगर कहते हैं कि सदन की कार्यवाही नियमों के मुताबिक चली तो यह सिर्फ उनका मानना है, विपक्ष इससे इत्तेफाक नहीं रखता।