अनुकंपा आधार पर नौकरी अपवाद, जरिया नहीं हो सकती, हरियाणा हाईकोर्ट ने ठुकराई याची की अपील
अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति को नियुक्ति पाने का एक ज़रिया नहीं माना जा सकता। यह सिर्फ एक अपवाद है। ये टिप्पणी पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक जवान की मौत के 12 साल बाद बेटे द्वारा अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग संबंधी अपील पर की है। हाईकोर्ट ने उसकी अपील को रद्द कर दिया। सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए यह अपीलीय केस दायर किया गया था। हाईकोर्ट जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस विकास सूरी की डबल बेंच ने अब मामले में फैसला दिया है। बेंच ने कहा कि कर्मचारी की मौत 22 नवंबर 1997 को हुई थी। उस समय अपीलकर्ता मात्र 7 साल का था। ऐसे में मृतक की पत्नी ने अपने लिए अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग नहीं की। इसका बेहतर कारण वह ही जानती होगी। हाईकोर्ट ने कहा कि अनुमान लगाया जा सकता है कि परिवार दरिद्रता में नहीं होगा। यह था मामला अपीलकर्ता टिंकू के पिता की वर्ष 1997 में मृत्यु हुई थी। उसके पिता जय प्रकाश हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल थे। 22 नवंबर 1997 को उनकी मौत हो गई थी। उस दौरान 8 मई, 1995 की एक पॉलिसी थी, जिसमें क्लास 3 और क्लास 4 के लिए एक्स-ग्रेशिया नियुक्ति की बात की गई थी। इसमें लाभार्थी को एक रैंक कम नौकरी मिलती थी। पॉलिसी के मुताबिक, 3 सालों में अर्जी देनी होती थी। 31 अगस्त, 1995 को पॉलिसी में बदलाव हुआ। उसमें कहा गया कि लंबित एक्स-ग्रेशिया केसों में वरिष्ठता तय की जाए, जब तक नौकरी न दे दी जाए। सरकार ने भी मांग ठुकरा दी थी टिंकू अपने पिता की मौत के दौरान सिर्फ 7 साल का था। ऐसे में बालिग होने पर उसने जनवरी 2009 में अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग की थी। 22 मार्च, 1999 के सरकारी निर्देशों के आधार पर उसकी मांग को रद्द कर दिया गया था। उसमें कहा गया था कि आश्रित को उस स्थिति में नौकरी दी जा सकती है, यदि वह नाबालिग हो, मगर तीन साल के भीतर बालिग हो जाए। उसने सरकारी आदेशों को सिंगल बैंच में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उसकी अपील को खारिज कर दिया है।