Himachal : ख़ता इंसानों की, सजा मिल रही शिमला के पेड़ों को ?
राजधानी शिमला में मानसून की बरसात ने भारी तबाही मचाई है। बरसात की भेंट कई मकान और पेड़ भी चढ़ गए।
पराक्रम चन्द : शिमला: राजधानी शिमला में मानसून की बरसात ने भारी तबाही मचाई है। बरसात की भेंट कई मकान और पेड़ भी चढ़ गए। शिमला में 800 से ज्यादा पेड़ बरसात की बली चढ़ गए। जो बच गए और खतरे की जद्द् में है उन पर आरी चल रही है। वैसे तो शिमला को पहाड़ों की रानी कहा जाता है। क्योंकि इन्ही देवदार की आबोहवा पर्यटकों को अपनी ओर आकृषित करती है।
इस बरसात में पेड़ ऐसे गिरे जैसे इंसान गिर जाता है। पेड़ों के गिरने की तो फ़िर भी संख्या है, इंसान के गिरने की कोई सीमा नही है। मनुष्य इतना स्वार्थी है कि पेड़ की पूजा भी करेगा लेकिन जब उसके नीचे घर बना देगा तो काटने से भी पीछे नही हटता है।
अपनी गलती को छिपाने के लिए कुछ लोग अब ये भी तर्क देने लगे हैं कि शिमला के पेड़ बूढ़े हो चले है इसलिए गिर रहे हैं। लेकिन सौ साल की उम्र वाले पेड़ों की जगह नये पेड़ क्यों नहीं लगाए गए। नए पेड़ों को लगाने के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च किया गया पेड़ कहीं दिखते नही है। ये गलतियाँ आने वाली पीढ़ियों को भुगतनी होंगी।
"इंसान ने भविष्य की खुशियों को मार दिया, जब पेड़ को आरी से काट दिया"
भारत में सबसे पुराना चित्रित पेड़ पीपल है। प्राचीन समय से भारतीय महाद्वीप में वृक्षों का आध्यात्मिक महत्व रहा है। वेदों और पुराणों में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि पेड़ों में भी प्राण होते हैं और उन्हें ‘वनस्पती’ या वन देवता कहा गया है। प्राचीन काल में भी लोगों के लिए पेड़ों का सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ संबंधी महत्व था। तुलसी व नीम का औषधि के रुप में प्रयोग होता रहा है। बरगद और मैंग्रोव का पर्यावरण की दृष्टि से महत्व था जबकि अन्य पेड़ आहार के रुप में इस्तेमाल होते रहे हैं।
हिंदु धर्म में पेड़ों का संबंध कई देवी-देवताओं से है। एक किवदंती के अनुसार एक बार शिव और पार्वती अंतरंग समय बिता रहे थे तभी अग्नि देवता बिना आज्ञा के अचानक अंदर आ गए। लेकिन शिव ने जब इस पर कुछ नहीं कहा तो पार्वती नाराज़ हो गईं और सभी देवताओं को पृथ्वी पर पेड़ का रुप धारण करने का श्राप दे दिया। श्राप से डरकर देवता पार्वती के पास पहुंचे और कहा कि अगर वे सभी पेड़ बन गए तो असुर शक्तिशाली हो जाएंगे। चूंकि श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था, पार्वती ने कहा कि उनका भले ही पूरी तरह पेड़ का रुप न हो लेकिन वे कुछ हद तक पेड़ के अंदर रहेंगे।
पुराणों के अनुसार कमल विष्णु की नाभी से निकला था। जबकि पीपल सूर्य से पैदा हुआ और पार्वती की हथेली से इमली का पेड़ निकला था। सबसे ज़्यादा पवित्र पीपल को माना जाता है। जिसे संस्कृत में ‘अश्वत्थ’ कहा जाता है। बौद्ध कविता महावासमा के अनुसार जिस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्षों बाद अशोक ने उसकी एक शाखा को कटवाकर सोने के गुलदान में लगवाया था।
अशोक वृक्ष का संबंध काम देवी से है। संस्कृत में अशोक का अर्थ दुख रहित होता है या ऐसा व्यक्ति जो किसी को दुख नही देता। रामाय़ण में रावण द्वारा हरण के बाद सीता को अशोक वृक्ष के नीचे रखा गया था। बरगद का पेड़ शिव, विष्णु और ब्रह्मा का प्रतीक है। बरगद के पेड़ के को 1050 में भारत का राष्ट्रीय वृक्ष घोषित किया था। इसी तरह तुलसी को भी पवित्र माना जाता है। हिंदु इसे तुलसी/वृंदा देवी का सांसारिक रुप मानते हैं। उसे लक्ष्मी का अवतार कहते है और इस तरह वह भगवान की पत्नी हुईं।
इस श्लोक में पेड़ के महत्व को बताया गया है।
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अर्थात्- जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नहीं करने पड़ेंगे।