Himachal : महाभारत के दानवीर कर्ण कैसे बने माहूंनाग देवता, मंडी के गांव शैब्दल में बने कर्ण मन्दिर पर है लाखों लोगों की आस्था
श्री मूल माहूंनाग जी मन्दिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के करसोग में बखारी, शिमला-करसोग सड़क मार्ग पर स्थित है।
पराक्रम चन्द : मंडी: श्री मूल माहूंनाग जी मन्दिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के करसोग में बखारी, शिमला-करसोग सड़क मार्ग पर स्थित है। शिमला से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी के पश्चात खील कुफरी से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर सैंकड़ों वर्षों से जनमानस की भक्ति और प्रगाढ़ आस्था का केंद्र है। श्री मूल माहूंनाग जी महाराज को क्षेत्र के लोग महाभारत समय के श्री कर्ण जी महाराज के रूप में पूजते हैं, जो वही सूर्य पुत्र हैं। जिन्होंने द्वापर युग में पांडवों के विरुद्ध युद्ध किया था।
ऐसा कहा जाता है कि माहूंनाग की उत्पत्ति यहां के एक गांव शैब्दल में हुई थी। जब एक किसान खेत में हल जोत रहा था तो अचानक एक जगह आकर हल जमीन में फंस गया। किसान के बहुत प्रयत्न करने पर भी जब हल बाहर नहीं निकला तो मिट्टी हटाकर देखा गया। तब पता चला कि वहां एक मोहरा (पत्थर की मूर्ति) है। उसे बाहर निकालने का प्रयास हुआ, मगर जैसे ही मोहरा बाहर आया तो वहां से उड़ गया और बखारी में स्थापित हो गया। जहां आज मूल माहूंनाग का मंदिर विद्यमान है। भवन पूरी तरह पत्थरों से निर्मित है। इसके दरवाजे और खिड़कियां देवदार की लकड़ी से बनाए गए हैं । जिस पर बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है।
माहूंनाग को दानवीर कर्ण का अवतार माना जाता है। देव बड़ेयोगी माहुंनाग के गुरु माने जाते हैं। महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने छल से कर्ण का वध तो कर दिया । लेकिन अर्जुन कर्ण को मारने के बाद ग्लानी से भर गया। कहा जाता है कि अर्जुन ने अपने नाग मित्रों कि सहायता से कर्ण के शव को लाकर सतलुज के किनारे ततापानी के पास अंतिम संस्कार किया था। उसी चिता से एक नाग प्रकट हुआ। वह नाग इसी जगह बस गया। इसी नाग देवता को लोग आज भी माहूंनाग के रूप में पूजते हैं।
महूँगाग के बारे में माना जाता है कि एक बार सुकेत के राजा श्याम सेन को मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने छल से दिल्ली में कैद कर लिया। वह सुकेत को अपने राजा के अधीन करना चाहता था। सुकेत के राजा श्याम सेन ने कैद से मुक्ति पाने के लिए कई देवी- देवताओं को याद किया। लेकिन कैद से निकल नहीं पाया। तब राजा ने नागराज कर्ण का स्मरण किया। महूँगाग ने राजा को मधुमक्खी के रूप में दर्शन दिए और जल्दी ही कैद से छूटने की बात कही। राजा ने कहा कि अगर वह कैद से मुक्त हो जाएगा तो वह अपना आधा राज्य राजा कर्ण माहुंनाग को समर्पित कर देगा। इसके बाद मुग़ल सम्राट को शतरंज खेलने कि इच्छा हुई। लेकिन उसे खेलने के लिए कोई खिलाड़ी नहीं मिला। तब उसने राजा श्याम सेन को खेलने के लिए कैद से मुक्त किया। उस दिन राजा श्याम सेन शतरंज में जीतता गया और अंत में उसने अपने मुक्त होने कि बाज़ी जीत ली साथ ही अपने राज्य की और चल पड़ा।
अपने वचन के अनुसार राजा ने महूँगाग को अपना आधा राज्य और 400 रूपए नगद चांदी हर साल नजराना देना तय किया। किन्तु माहुंनाग ने इतना बड़ा क्षेत्र नहीं लिया और केवल महूँगाग क्षेत्र का सीमित भू-भाग ही लिया। माहुंनाग स्वर्ण दान तो करते हैं पर स्वर्ण श्रृंगार नहीं करते। माहुंनाग मंदिर में सवा किलो सोने का मेहरा है और चांदी के 8 छत्र हैं।
चैत्र मास के नवरात्रों में हर साल लगभग एक मास कि रथ यात्रा माहुनाग सुंदरनगर क्षेत्र के लोक कल्याण हेतु करते हैं। जिसने देवता का रथ गुर, पुजारी, मेहते कारदार, बजंत्री और श्रद्धालु साथ चलते हैं। ज्येष्ठ मास कि सक्रांति से 5 दिवसीय मेला बागड़दड में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस मेले के इतिहास का संबंध हिमाचल में अंग्रेजी शासन से है। माहुंनाग के गुर को परीक्षा के लिए सतलुज में छलांग लगा कर सुखी रेत निकालनी पड़ती है। महूँगाग मंदिर में भक्तगण दूर -दूर से अपनी मन्नतें पूरी होने पर आते हैं।