हरियाणा : राजस्थान में चुनाव लड़ने पहुंची जेजेपी की बड़ी हार, अधिकतर उम्मीदवार नहीं छू पाए हजार का भी आंकड़ा
तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी हार के बाद हरियाणा की राजनीति में भी इसका जल्द ही बड़ा असर दिखने को मिल सकता है।
चंडीगढ़: तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी हार के बाद हरियाणा की राजनीति में भी इसका जल्द ही बड़ा असर दिखने को मिल सकता है। चुनाव से पहले जहां कांग्रेस जीत के दावे कर रही थी वहीं पड़ोसी राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छतीसगढ़ की हार के बाद पार्टी के बड़े नेताओं के माथे पर सिलवटे जरूर देखने को मिल सकती है। इतना ही नहीं एक बड़ी उम्मीद के साथ राजस्थान चुनाव में ताल ठोंकने पहुंची जेजेपी को भी लगभग सभी सीटों पर बेहद बुरी हार का सामना करना पड़ा है। अधिकतर सीटों पर पर जेजेपी एक हजार का आंकड़ा तक नहीं छू पाई।
तीन राज्यों में भाजपा की जीत ने हरियाणा की मौजूदा भाजपा सरकार में एक नया जोश भर दिया है। प्रदेश में हालांकि अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।लेकिन यह माना जा रहा है कि इन तीन राज्यों की जीत ने हरियाणा विधानसभा चुनावों की भी पटकथा लिख दी है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी और भाजपा की लगातार मजबुती अब भाजपा को प्रदेश में नया टॉनिक देगी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल पहले ही प्रदेश के लगातार दौरे कर सरकार के कामकाजों को जनता के सामने रख रहे हैंं। मध्यप्रदेश में जिस तरह से भाजपा ने रिपीट किया है उससे यह साफ संदेश है कि जनता सरकार के बेहतरीन कार्यों का समर्थन करने से गुरेज नहीं करेगी।
नए प्रदेशाध्यक्ष के पद पर नायब सैनी को बैठाकर ओबीसी वोटों को भी भाजपा ने संदेश दिया है। इसके अलावा पूर्व मंत्री विनोद शर्मा जैसे दिग्गज भी भाजपा के साथ होने से भी मजबूती मिली है। सरकार लगातार जन संवाद जैसे कार्यक्रमों से लोगों तक पहुंच रही है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के लिए सबसे नकारात्मक बात दस साल बाद भी संगठन खड़ा न होना माना जा रहा है। इसके अलावा लगातार बढ़ती गुटबाजी कहीं न कहीं वर्करों का मनोबल गिरा रही है।
वहीं दूसरी तरफ सरकार में सहयोगी जेजेपी को लेकर भाजपा में दो राय हैं।
एक वर्ग जजपा को दूर करने का लगातार प्रयास करता रहा है। जेजेपी ने भी राजस्थान चुनावों में अपना दमखम दिखाने के नजरिए से मैदान में उतरने का निर्णय लिया था। अधिकतर जाट बाहुल्य सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे में मगर परिणाम बेहद निराशाजनक रहे। हालत यह रही कि एक सीट पर तो उम्मीदवार को मात्र 158 वोट ही मिले। पार्टी की महिला प्रदेशाध्यक्ष रिटा चौधरी को केलवल 1476 मतों से ही संतोष करना पड़ा। भरतपुर से डॉ मोहन चाौधरी को 735, सूरतगढ़ से प्रदेशाध्यक्ष पृथ्वीराज मील को 6782, फतेहपुर से पूर्व विधायक नंद किशोर महरिया को वोट 23857, दाता रामगढ़ से रिटा चौधरी 1476,खंडेला से सरदार सिह आर्य को 848 , कोटपुतली से रामनिवास यादव को 1682, भरतपुर से मोहन सिंह चौधरी को 735, कामां से शमशूल हसन को 211 मत ही मिल पाए। नसीराबाद सक जीवराज को 1022 , सूरसागर से इमितियाज अहमद 394 , तारानगर विनय कुमार 948 तो गंगापूर से ओप्रकाश को 600, भादरा से कार्तिकेय डुडी को 1223 , नीमका थाना से रघुवीर सिंह , बगरू से हरिश ढाबी को 180 , महुवा आशुतोष को 612 ,खाजूवाला से सीताराम को 3953 , झोटवाडा से दीन दयाल को 158 तो रामगढ़ से इजहार 330 वोट मिले। हिंडोन गायत्री ने 6372 वोट प्राप्त किए।
कुल मिलाकर माना जा रहा है कि भले ही कांग्रेस ने तेलंगाना में शानदार जीत हासिल की हो मगर हिंदी राज्यों में उसकी बुरी हार ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के खतरे से अवगत करवा दिया है।