पंजाब में मिली हार और अपनी गलतियों से कांग्रेस ने सीखा सबक, हरियाणा और हिमाचल में नहीं दोहराई ये गलतियां
पंजाब में कांग्रेस सियासी प्रयोग कर चुनाव में अपना राजनीतिक हश्र देख चुकी है। जो सियासी दांव पेंच कांग्रेस आलाकमान ने आजमाए थे वो सब उल्टे पड़ गए। पंजाब में कांग्रेस का ये हाल हुआ कि विधानसभा चुनाव में उसे ऐसी करारी हार जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। पंजाब की हार से सबक लेते हुए कांग्रेस अब दूसरे राज्यों में अपने पुराने और स्थापित नेताओं पर ही भरोसा जता रही है, ताकि आने वाले समय में अपनी स्थिति को मजबूत किया जा सके। कैप्टन अमरेंदर पंजाब में कांग्रेस के बड़ा चेहरा थे। अमरेंदर को गद्दी से उतारकर पंजाब में कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला था, लेकिन खेल उल्टा पड़ गया। ऐसे में कांग्रेस हरियाणा हिमामचल में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। साथ इन प्रदेशों में आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस को डराने लगी है। पंजाब में आप ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया है। पहली बार जब दिल्ली में केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे तो उससे पहले दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को आप ने ही सत्ता से बेदखल किया है। हाल अब ये हैं कि दिल्ली में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। दोबारा ऐसा हाल ना हो इसके लिए हरियाणा में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी उदयभान को सौंपी गई है, जो दलित समुदाय से आते हैं। हुड्डा हरियाणा में कांग्रेस के स्थापित और बड़े नेता हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को सौंपा है। प्रतिभा सिंह छह बार हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे वीरभद्र सिंह की पत्नी हैं। प्रतिभा सिंह खुद वर्तमान में सांसद हैं और पिछले साल उपचुनावों में जीत हासिल की है। वीरभद्र सिंह के परिवार का हिमाचल में राजनीतिक रसूख अन्य नेताओं से ज्यादा। वीरभद्र सिंह एक अच्छा खासा वोट बैंक कांग्रेस के लिए छोड़ गए हैं। इसके साथ ही वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रतिभा सिंह के साथ सहानुभूति लहर भी हो सकती है। ऐसे में साफ जाहिर होता कि कांग्रेस अब अपने स्थापित और मजूबत नेताओं के सहारे ही चुनावी जंग लड़ने का फैसला किया है। पंजाब में कांग्रेस का सियासी दांव पड़ा उल्टा बता दें कि कांग्रेस ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह पर भरोसा करने के बजाय नवजोत सिंह सिद्धू पर दांव लगाया था। पार्टी ने कैप्टन को हटाकर सत्ता चरणजीत सिंह चन्नी तो संगठन की कमान नवजोत सिंह सिद्दू को सौंपकर नए चेहरे का सियासी प्रयोग किया था। इसका हश्र यह हुआ कि कांग्रेस सिर्फ पंजाब की सत्ता से ही बाहर नहीं हुई बल्कि 20 सीटों से भी नीचे चली गई, जो कि पार्टी की अब तक की राज्य में सबसे बुरी हार है। पंजाब में कांग्रेस के राजनीतिक बिखराव से सबक लेते हुए पार्टी हाईकमान ने अब किसी दूसरे राज्य में गलती नहीं दोहराना चाहती है। इसी का नतीजा है कि गुजरात में कांग्रेस ने पाटीदार नेता नरेश पटेल को लेकर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। वहीं, हरियाणा में कुलदीप विश्वनोई पर भरोसा जताने के बजाय कांग्रेस ने जिस तरह हुड्डा खेमे के उदय भान को पार्टी की कमान सौंपी है, उसके पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पावरफुल बनकर उभरे हैं। हुड्डा के करीबी उदयभान को कमान कांग्रेस ने उदय भान को पीसीसी चीफ बनाकर हुड्डा को पूरी तरह खुलकर खेलने का मौका दे दिया है। कांग्रेस हाईकमान ने नए अध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति करते समय सभी गुटों को साधने की कवायद है तो किया ही, साथ ही हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल के नेता पर बरकरार रखते हुए दलित व जाट के बीच राजनीतिक संतुलन साधने में सफलता हासिल की है। प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद साफ है कि हरियाणा में न केवल जल्दी ही संगठन तैयार होगा, बल्कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर हुड्डा की पसंद-नापसंद का पूरा ख्याल रखा जाएगा। हालांकि, हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ताजपोशी की संभावना थी, लेकिन पार्टी में आम धारणा है कि जो नेता कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनता है, वह कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। इसलिए हुड्डा ने कांग्रेस विधायक दल का नेता बने रहना मंजूर किया है। कुमारी सैलजा से पहले अशोक तंवर और हुड्डा समर्थक साथ मिलकर नहीं चल सके। इस तनातनी का नतीजा यह हुआ कि न तो अशोक तंवर और न ही सैलजा संगठन तैयार कर पाए। तंवर के बाद सैलजा के खिलाफ मोर्चा खोलने में हुड्डा समर्थक कामयाब हो गए, लेकिन कांग्रेस हाईकमान प्रदेश अध्यक्ष की कमान दलित नेता उदयभान को ही सौंपी है। ये अलग बात है कि उदयभान को हुड्डा का करीबी माना जाता है। सैलजा को हटाने में हुड्डा खेमा सफल रहा बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हुड्डा ने खुलकर कहा था कि यदि टिकटों का बंटवारा ठीक ढंग से किया गया होता तो राज्य में कांग्रेस सत्ता में होती। उनका यह इशारा प्रदेश अध्यक्ष रही कुमारी सैलजा की तरफ था, जिन्होंने करीब आधा दर्जन ऐसे नेताओं के टिकट कटवा दिए थे, जिन्हें हुड्डा चुनाव लड़वाना चाहते थे। हुड्डा समर्थक विधायक पिछले काफी समय से कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाने के लिए प्रयास कर रहे थे।