किसानों के प्रदर्शन को कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के नेताओं का समर्थन, भारत ने दी ये प्रतिक्रिया

By  Arvind Kumar December 2nd 2020 09:43 AM -- Updated: December 2nd 2020 09:44 AM

नई दिल्ली। तीन नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों का प्रदर्शन पिछले कई दिनों से जारी है। इस बीच किसानों के प्रदर्शन को कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के नेताओं का समर्थन मिला है। इसे लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो ने कहा कि अगर मैं किसानों के प्रदर्शन के बारे में भारत से आ रही खबरों पर ध्यान देना शुरू नहीं करता तो बेपरवाह होता। स्थिति चिंताजनक है। शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा खड़ा रहेगा। हमने अपनी चिंताओं को रेखांकित करने के लिए कई जरियों से भारतीय अथॉरिटीज से संपर्क किया है। [caption id="attachment_454106" align="aligncenter"]Canada leaders support farmers protest किसानों के प्रदर्शन को कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के नेताओं का समर्थन, भारत ने दी ये प्रतिक्रिया[/caption] वहीं यूके में लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह धेसी ने किसानों को पीटे जाने का जिक्र करते हुए ट्वीट कर कहा है, ''मैं हमारे परिवार और दोस्तों सहित पंजाब और भारत के अन्य हिस्सों के किसानों के साथ खड़ा हूं, जो शांतिपूर्ण तरीके से किसान बिलों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।'' यह भी पढ़ें- किसानों की केंद्र सरकार से बैठक का नहीं निकला कोई नतीजा यह भी पढ़ें- नहीं होगा हिमाचल विधानसभा का शीतकालीन सत्र, कैबिनेट का फैसला ओंटैरियो प्रोविंशियल पार्लियामेंट में ब्रैम्पटन ईस्ट का प्रतिनिधित्व करने वाले गुररतन सिंह ने ट्वीट कर कहा,"ओंटारियो भारत के साथ एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में बड़ा व्यवसाय करता है। हम पंजाब में किसानों के खिलाफ भारत सरकार द्वारा की जा रही राज्य-हिंसा पर चुप नहीं रह सकते।" अमेरिका से हरमीत ढिल्लों किसानों के समर्थन में है। वकील हरमीत ढिल्लों ने ट्वीट कर कहा है कि भारत सरकार के कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों पर हमला देखकर ''उनका दिल टूट जाता है।'' उन्होंने पीएम मोदी से अपील की है कि वह किसानों को सुनें और उनसे मुलाकात करें। हालांकि भारत ने इसे देश का आंतरिक मामला बताया। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि किसानों को लेकर की गई टिप्पणी ठीक नहीं है। इसलिए क्योंकि ये एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों में से एक है। डिप्लोमेटिक बातचीत को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए गलत तरीके से पेश नहीं किया जाना चाहिए।

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